रविवार, 27 अक्टूबर 2024

सन्नाटों की जीत


सुख सपनों  को लील गये 
लोलुपता और  स्वार्थ 
अब  रिश्तों  में  रहा  नहीं  
जीवन  का  भावार्थ 

हर रास्ते पर  झूठ खडे 
सब दरवाजे  बन्द 
 होठों से हैं फूट  पड़े 
बोलो  की दुर्गन्ध 

किस्मत में है  मिले  नहीं 
खुशियो के कहीं गीत 
बिखरा बिखरा मौन रहा 
सन्नाटों की  जीत 

संवादों  के  पुल  ढहे 
काली काली  रात 
उजियाले भी  दूर  रहे 
छले गये  ज़ज्बात 

पथ पर  कांटे  मिले  जहा
वहीं  मिले  है  फूल 
अनुभव मन  की  याद  रही 
जीवन  का  स्कूल







1 टिप्पणी:

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