बुधवार, 9 अक्तूबर 2024

मां


माता  मन  का  भाव  पढ़ें 
माँ मन  की  है  प्रीत 
नित  ही  नव  निर्माण  करे
सोचे सबका  हित 

माता के  बिन नहीं मिले 
शिक्षा और  संस्कार 
बिन  माता  के  देह  नहीं 
निर्जीव  यह  संसार 


माँ आँगन और द्वार रही 
माता  छत दीवार 
छत की स्नेहिल  छांव रही 
सुरक्षित  परिवार 

माँ ज्ञाता  और  ज्ञान  रही 
शिल्पी  का  कौशल्य
सच्चे बन  सत्कर्मों  करो 
देगी  वह  वात्सल्य 

माता केवल  देह  नहीं 
अनुभूति है  बोध 
अनुभूतियां  शुध्द  करे 
हटते  सब  अवरोध 

जीवन उसका  सुखी  रहा 
जिसके  मन  संतोष 
 माँ सबको हैं देख रही 
देखे गुण और दोष

माता सुख  की  छांव  रही 
माँ  दुख  में  है   धीर 
सुख  की  छाया  बनी  रहे 
दुख  में  न  हो  पीर 

सबमें  मम का भाव रहा 
मम मे  रहता  मोह 
जीवन है  कठिनाई  भरा 
आरोह अवरोह 

सुख में  घर और  द्वार रहे 
दुख के नहीं  पहाड 
निर्भीक  होकर  कर्म  करो 
सिंह  सी  भरो दहाड़ 

 

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शुक्रवार 11 अक्टूबर 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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