मंगलवार, 17 अक्तूबर 2017
बुधवार, 27 सितंबर 2017
महिमा की माँ गात रहा
माता मेरे साथ रही ,ममतामय परिवेश
अंचल में वात्सल्य भरा ,करुणा का है देश
माँ मन में विश्वास रहे, मन न हो निर्बलमन में ऊर्जा व्याप्त रहे ,श्रध्दा और सम्बल
माँ शक्ति का रूप है, धन वैभव का स्रोतभक्ति से भरपूर रहे ,जलती पावन जोत
माँ की ममता जिसे मिली ,धन्य हुआ वह जीव
संवेदना से शून्य रहा ,ह्रदय विहीन निर्जीव
महिमा की माँ गात रहा ,ग्रन्थ संत और श्लोकमाँ के नयनो नीर बहा ,डूब गए तीन लोक
माँ तेजोमय रूप है, होती ज्योति रूपपोषण पालन देती रही ,देती छाया धूप
माँ प्रीति की गंध लिए रागिनी है राग
भोजन माँ का पुष्ट करे जग जाते है भाग
माँ के चरणों आज रहा होता भावी कल
माँ की करुणा उसे मिली होता जो निश्छल
हे माँ तेरी कृपा मिले तव चरणन की धूल
जलते आस्था दीप रहे हो आलोकित हो मूल
माँ की हर पल याद रही मात रही हर अंग
माँ का मस्तक हाथ रहा जीत गए हर जंग
जब तक चलती सांस रहे ममता हो विश्वास
अवचेतन भी तृप्त रहे मिट जाए संत्रास
माँ की शक्ति साथ रही साथ रहा आशीष
भय बाधा से मुक्त हुए निर्भीक हुई हर दिश
माँ नदिया सम साथ रही सिंचित होते खेत
हर जन बुझती प्यास रही शिव के दर्शन देत
रविवार, 24 सितंबर 2017
पूज्य कर्म पर मौन
घटी उमरिया जात रही , मिटी भाग्य की रेख
सदाचार सद वृत्ति रहे, अवगुण कर दू त्याग
माता मन से दूर करो, लालच और अनुराग
गुरुवार, 21 सितंबर 2017
बुझी हुई राख
मिटटी में मिल गई ,बची खुची साख
आस्थाये जल गई आशा हुई ख़ाक
आस्तीन में छुप गए , दे गए डंक
जीवन की सरसता
सरल और तरल बन सरिता बही है
जीवन की सरसता यही पर कही है
प्रफुल्लित हुआ मन सहजता यही है
करम ही धरम है करम की बही है
शिथिल सा रहा जो ईमारत ढही है
सदा वह मरा है जो जरा भी डरा है
निडरता जहाँ पर सफलता वही है
नरम है गरम है भरम ही भरम है
गगन से क्षितिज है इधर तो मही है
लगन है अगन है मगनमय जीवन है
ऋतु है शरद की कही अनकही है
शुक्रवार, 17 मार्च 2017
क्षणिकाएं
(1)
वे भ्रष्टाचार उन्मूलन प्रकोष्ठ के है पदाधिकारी
मिल जायेगी उनके पास
सभी भ्रष्ट अधिकारियो की जानकारी
जिसे दबाने के लिए लेते है वे रिश्वत भारी
(2)
उन्होंने बनाया युवा विचार मंच
युवा और विचारो के सिवाय
मिल जायेगे सब प्रपंच
(3)
हाथ से निकले हुए
धन के सूत्र है
इसलिए वे माता
सरस्वती के पुत्र है
गुरुवार, 16 मार्च 2017
प्यार की कमाई
अदाए मदमस्त तेरी मेरी यादो में सजती
दिन तो गुजर जाते है रात में तन्हाई डसती
तेरी चाहत से मैंने जो राहत पाई है
तेरे हाथो में थमा दी है मैंने प्यार की कश्ती
दिल के भीतर मैने सूरत तेरी बसाई है
मेरे दोसत तेरे प्यार मे सागर सी गहरायी है
बदन की खुशबु जो घुल गयी है मेरी साँसो मे
वो मेरे प्यार कि थोड़ी सी कमाई है
मौसम का तीखा मिजाज है
चाहत के नये अन्दाज है
आप कही भी रहो सनम
रहते हो हर पल मेरे पास है
तेरे आने कि खुशी ने जगा दी है आस
और जाने के ही गम से हो गये उदास
रहते हो हर पल मेरे आस-पास
हो जाती दूर उलझने मिलता जीने का साहस
बारिश का सुहाना मौसम कितना अनूठा है
तनाव भरी व्यस्तता में आनंद जीवन का रूठा है
प्रकृति की शरण में रहे घुमे फिरे भ्रमण करे
स्वास्थ्य का महामंत्र सच्चा है बाकि सब झूठा है
भाग्य के प्राची क्षितिज पर ,उग सूर्य आया है
चाँद सा चेहरा तेरा ,जब खिलखिलाया है
महकते मोगरे चम्पा चमेली, बाग़ उपवन में
मधुरता घुल गई है ,तेरी बोली से मेरे मन में
तुम्हारे रुप के कारण, हर पल मुस्कराया है
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,चाँद सा चेहरा तेरा ,जब खिलखिलाया है
भाग्य के प्राची क्षितिज पर ,उग सूर्य आया है
मेरी यादो के भीतर ,सदा तेरा अहसास रहता है
तेरी ऑखो मे डूबकर ,मेरा तन मन पिघलता है
तुम्हारे नेह की गागर मे, सागर भी समाया है
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,चाँद सा चेहरा तेरा ,जब खिलखिलाया है
सोमवार, 13 मार्च 2017
यहाँ रंग कही गहराया है
अब वक्त कहा मिल पाता है
फागुन की मस्ती छाती है
मन मन ही मन कुछ गाता है
है सहज सरल से तरल नयन
मौसम में रंगत आई है
बच्चो की शक्ले निखर रही
बस्ती ने रौनक पाई है
संसार सगो का मैला है
इंसान अकेला ही जाता है
यहाँ बदन गठीला मोहे मन
सुंदरता सबको भाती है
भीतर जो होती कोमलता
ओझल होकर रह जाती है
मानव मन का यह दोहरापन
सौंदर्य कहा रख पाता है
यहाँ समय सदा ही सपनो सा
खुश किस्मत ने ही पाया है
दुःख सह कर भी मद मस्ती का
यहाँ रंग कही गहराया है
सुख की है छाँव नहीं आती
सुख सपनो का कब आता है
यह रंग बिरंगी दुनिया है
रंगों में सब कुछ पाया है
फागुन में बसते रंग रहे
जिसे झूम झूम कर गाया है
रंगों में मस्ती नाच रही
यह रंग बहुत सिखलाता है
शुक्रवार, 3 मार्च 2017
सपने रहे चकोर
शनिवार, 11 फ़रवरी 2017
पुकारता तू आसमाँ
निहारता तू भौर है
शशि ने हिलोर है
क्षितिज का न छोर है
लगा ले दम किनोर है
जीवन मरण का दौर है
ख़ुशी से मन विभौर है
मिला नहीं तुझे सनम
सफल न करता शोर है
खुद ही पे तेरा जोर है
भीतर तेरे ही ठौर है
सुहाता नहीं ये समा
अभी तो तू किशोर है
सोमवार, 30 जनवरी 2017
रेत पर मिले काफिले है
आँगन का दीपक
जहा दिव्य हैं ज्ञान नहीं रहा वहा अभिमान दीपक गुणगान करो करो दिव्यता पान उजियारे का दान करो दीपक बन अभियान दीपो ...
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जीवन में खुश रहना रखना मुस्कान सच मुच में कर्मों से होतीं की पहचान हृदय में रख लेना करुणा और पीर करुणा में मानवता होते भग...
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जिव्हा खोली कविता बोली कानो में मिश्री है घोली जीवन का सूनापन हरती भाव भरी शब्दो की टोली प्यार भरी भाषाए बोले जो भी मन...
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देखते हम ध्रुव तारा ब्रह्म है पर लोक प्यारा ज्योतिष में विज्ञान है अब चंद्र पर प्रज्ञान है देश अब आगे बढ़ा है चेतना के न...