कर इसका सम्मान
श्रम के पथ से पायेगा
मंजिल और अरमान
श्रम से सब भ्रम दूर रहे
श्रम से मिले शिखर
जीवन मे सब साध्य रहे
श्रम से जाये निखर
जीवन कोई उद्देश्य नहीं
बस खुद की परवाह
राहों में है भटक रहा
वहीं रहा गुमराह
करुणा और क्रंदन के गीत यहां आए है सिसकती हुई सांसे है रुदन करती मांए है दुल्हन की मेहंदी तक अभी तक सूख न पाई क्षत विक्षत लाशों में अपन...
सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
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