शनिवार, 28 नवंबर 2020

यह दैविक संयोग

अब सर्दी में आग लगी , जलने लगे अलाव
अपने मन को आंच मिली, होने लगा लगाव

अपनापन था कहा गया, कहा गये वो लोग
होकर वत्सल बात करे,  करते छप्पन भोग

होठो पर मुस्कान नही , निष्ठुर सा स्वभाव
पल पल मन से लुप्त हुआ, अपनेपन का भाव

पैदल चल कर हांफ रहे , काँप रहे है पैर
हृदय को जब रोग मिला, होता पल में ढेर

अपनो से है रोग मिला , अपनो का शोक
अपनेपन का भाव मिला ,यह दैविक संयोग

जो  चलते है नित्य नये , उल्टे सीधे दाँव
उनको मिलते रोज नये , जीवन मे भटकाव

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 29 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. अपनो से है रोग मिला , अपनो का शोक
    अपनेपन का भाव मिला ,यह दैविक संयोग
    सुन्दर रचना।

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज