अपने मन को आंच मिली, होने लगा लगाव
अपनापन था कहा गया, कहा गये वो लोग
होकर वत्सल बात करे, करते छप्पन भोग
होठो पर मुस्कान नही , निष्ठुर सा स्वभाव
पल पल मन से लुप्त हुआ, अपनेपन का भाव
पैदल चल कर हांफ रहे , काँप रहे है पैर
हृदय को जब रोग मिला, होता पल में ढेर
अपनो से है रोग मिला , अपनो का शोक
अपनेपन का भाव मिला ,यह दैविक संयोग
जो चलते है नित्य नये , उल्टे सीधे दाँव
उनको मिलते रोज नये , जीवन मे भटकाव
वाह
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 29 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअपनो से है रोग मिला , अपनो का शोक
जवाब देंहटाएंअपनेपन का भाव मिला ,यह दैविक संयोग
सुन्दर रचना।