रविवार, 22 नवंबर 2020

मूर्ख बने विद्वान

खट्टे मीठे स्वाद रहे ,खट्टे मीठे बैर 
खतरे में सम्वाद रहे ,अपने होते गैर

बस्ता और स्कूल रहा, बच्चा है गणवेश 
शिक्षा रोटी भूख हुई, शिक्षक है उपदेश

हर घर मे दुकान हुई , शिक्षा कारोबार
जितने स्कूल रोज खुले, उतना बंटाधार

शिक्षा भी बदनाम हुई , शिक्षित बेरोजगार
अपने हक को मांग रहे, खेती न व्यापार

पुस्तक कूड़ेदान मिली, ज्ञान हुआ गुमनाम
ज्ञानी जन तो मूर्ख हूए, मूर्ख बने विद्वान

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 23 नवंबर नवंबर नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. हर घर मे दुकान हुई , शिक्षा कारोबार
    जितने स्कूल रोज खुले, उतना बंटाधार..।सुंदर और सटीक प्रस्तुति..।

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज