बुधवार, 4 नवंबर 2020

ऐसा क्या सन्यास भला

कैसा यह अभिसार रहा,कैसा रहा प्रणय
हृदय से अनुराग गये, दृष्टिगत अभिनय

मन की तृष्णा वही रही ,रहा हृदय में मोह
ऐसा क्या सन्यास भला, जिसमे विरह बिछोह

मन के भीतर भाव रहे, सीता के लव कुश
खुशिया जिसको नही मिली ,वह फिर भी है खुश

दिल से दिल के नही मिले जितने भी तार
कितने भी वे साथ रहे ,फिर भी है तकरार

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज