हृदय से अनुराग गये, दृष्टिगत अभिनय
मन की तृष्णा वही रही ,रहा हृदय में मोह
ऐसा क्या सन्यास भला, जिसमे विरह बिछोह
मन के भीतर भाव रहे, सीता के लव कुश
खुशिया जिसको नही मिली ,वह फिर भी है खुश
दिल से दिल के नही मिले जितने भी तार
कितने भी वे साथ रहे ,फिर भी है तकरार
बहुत सुंदर।
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