प्राणों को चैतन्य करो, दीपक का आव्हान
भीतर से जो दीप्त रहे ,उजले रहे विचार
अंधकार चहु और हटे, मन से हटे विकार
भीतर भीतर शोर रहा , भीतर से है शान्त
भीतर से उद्विग्न हुआ, भीतर से आक्रान्त
भीतर ही अंधियार रहा, भीतर रहा विहान
भीतर से क्यो भाग रहा, भीतर है भगवान
धन से धन ही बढ़ा यहाँ, धन बिन जस का तस
धन बिन होती नही दीवाली, धन से है तेरस
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 13
जवाब देंहटाएंनवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद
हटाएंदीप पर्व शुभ हो।
जवाब देंहटाएंसादर अभिवादन
हटाएंबहुत ही सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंडीप पर्व शुभकामनाएं
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर
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