रविवार, 1 नवंबर 2020

उतना ही आकाश

उर के भीतर राम रहे , उर के भीतर कृष्ण 
फिर भी किंकर्तव्यविमूढ़ , कितने तेरे प्रश्न

लाली नभ पर फैल रही , सूरज पर रख आस
जितना है विश्वास भरा, उतना ही आकाश 

तुझमे तेरे देव रहे , रख धीरज सदैव
भव में नैय्या तैर रही , नैय्या को तू खैव

जलधि भीतर द्वीप रहे , जलधि में है सीप
जलधि लांघे तीर नही , तू जलधि से सीख

जलधि जल का राज रहा, जलधि रहे जहाज
जलधि से जल खींच रहा , सूरज कल और आज

जलधि का सम्मान करो, पूजो जल को मित्र
जल से निर्मल भाव रहा, तन मन हुए पवित्र

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज