फिर भी किंकर्तव्यविमूढ़ , कितने तेरे प्रश्न
लाली नभ पर फैल रही , सूरज पर रख आस
जितना है विश्वास भरा, उतना ही आकाश
तुझमे तेरे देव रहे , रख धीरज सदैव
भव में नैय्या तैर रही , नैय्या को तू खैव
जलधि भीतर द्वीप रहे , जलधि में है सीप
जलधि लांघे तीर नही , तू जलधि से सीख
जलधि जल का राज रहा, जलधि रहे जहाज
जलधि से जल खींच रहा , सूरज कल और आज
जलधि का सम्मान करो, पूजो जल को मित्र
जल से निर्मल भाव रहा, तन मन हुए पवित्र
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