सोमवार, 2 नवंबर 2020

महके प्राण बसन्त

सूरज बिन प्रभात नही , चंदा बिन न रात
नभ से तारे ताक रहे , उनसे कर लो बात

भीतर भीतर श्वास भरो, छोड़ो श्वास महन्त
पूजा कर फिर ध्यान धरो ,महके प्राण बसन्त

प्राणों का संधान रहा, यौगिक प्राणायाम
सब रोगों से मुक्त करे , प्रतिदिन का व्यायाम

साँसों का आरोह रहा , साँसों का अवरोह
सांसो से क्यो हार रहा, साँसों को तू दोह


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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज