गुरुवार, 12 नवंबर 2020

धन से है तेरस

दीपक  से अनिष्ट टले ,कर लो दीप विधान
प्राणों को चैतन्य करो, दीपक का आव्हान

भीतर से जो दीप्त रहे ,उजले रहे विचार
अंधकार चहु और हटे, मन से हटे विकार

भीतर भीतर शोर रहा , भीतर से है शान्त
भीतर से उद्विग्न हुआ, भीतर से आक्रान्त

भीतर ही अंधियार रहा, भीतर रहा विहान 
भीतर से क्यो भाग रहा, भीतर है भगवान 

धन से धन ही बढ़ा यहाँ, धन बिन जस का तस
धन बिन होती नही दीवाली, धन से है तेरस

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 13
    नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज