विषयो से निर्लिप्त रहो , जाना है प्रभुधाम
करना अतिरेक नही ,अति से है नुकसान
अति ही बंधन बाँध रही , अति है दुख की खान
कर्मो से वह रोज भगा, दिखलाता है पीठ
जिसमे बल सामर्थ्य नही , वह होता है ढीठ
अति अंतर्मन बांध रही ,अंतर्मन में मोह
अति तो केवल अन्त करे, अति में अवरोह
अति किसी भी बात की ठीक नहीं है
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