बारिश में कई गाँव बहे , डूब गये घर बार
अपने अपने शौक रहे, अपनी रही पसन्द
सीख की बाते कौन सुने, मन की खिड़की बन्द
मन से खूब धनवान रहे, तन पे है पैबन्द
ऐसे भी कुछ लोग मिले, जो है नेक पसन्द
केवल पद का भान रहा, हुआ समय का फेर
जिनको मद अभिमान रहा, हो गये पल में ढेर
जितना मन पर भार रहा ,उतना रहा उधार
जीवन का है मूल्य बड़ा, निज का करो सुधार
जिसका प्रत्येक कर्म रहा, प्रतिफल को उत्सुक
उसको मालूम धर्म नहीं , बस कीर्ति की भूख
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें