जो जितना ही दूर रहा, वह उतना ही पास
ह्रदय के सामीप्य रहा , सुख दुख का अहसास
बाहर से है सख्त कठोर , भीतर से कमजोर
उसके भीतर कौन रहा, जिसकी ऊपर डोर
जो व्यक्ति उपकार करे , वह पाता सहयोग
जो स्वार्थी उपकार विहीन, पाया उसने रोग
खुली नहीं खिड़की दरवाजे बन्द है जीवन में बाधाएं किसको पसन्द है कालिख पुते चेहरे हुए अब गहरे है गद्य हुए मुखरित छंदों पर प्रतिबंध है मिली...
सुंदर सृजन
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