होता नही ईश सगा , उसका काम तमाम
निंदा होती व्यर्थ रही ,निन्दक है डरपोक
निन्दक नरक पधारिये, बिगड़ा है इहलोक
करता वह कुतर्क रहा , होता टस न मस
मिथ्या ही अभिमान किया , ले निन्दा का रस
निन्दक मन समझाईये , निन्दा है एक दोष
निन्दा से क्यो व्यक्त करे , तू अपना यह रोष
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