ईश के ही समतुल्य रही , मासूम की मुस्कान
नन्हे पंछी कहा गये, उनका कहा मुकाम
मासूम बच्चा देख रहा, कितना नभ सुनसान
पसरा हर पल मौन यहा,चमके तम झींगुर
कर्मो का न मूल्य रहा, समय रहा निष्ठुर
करते रहते सैर रहे , मिली नही है ठाँव
झूठो की है रही नगरिया, सीधे सच्चे गाँव
सुन्दर
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