शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

सीधे सच्चे गाँव

सौंधी खुशबू मिटटी की , ईश्वर का वरदान
ईश के ही समतुल्य रही , मासूम की मुस्कान

नन्हे पंछी कहा गये, उनका कहा मुकाम
मासूम बच्चा देख रहा, कितना नभ सुनसान

पसरा हर पल मौन यहा,चमके तम झींगुर
कर्मो का न मूल्य रहा, समय रहा निष्ठुर

करते रहते सैर रहे , मिली नही है ठाँव
झूठो की है रही नगरिया, सीधे सच्चे गाँव

1 टिप्पणी:

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज