जीवन कोई मंच नही, बन जा संत हृदय
जिसको तूने याद किया , उसकी याद सम्हाल
जो तुझको पाल रहा , वह गिरधर गोपाल
मिथ्या के है वस्त्र कुलीन, नग्न रहा है सत्य
कितने ऊँचे बोल रहे, अब उदघाटित तथ्य
वक्त सख्त और क्रूर रहा, कैसा है यह दौर
तन मन से जो जीत रहा, रहता वह सिरमौर
वाह
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