मंगलवार, 8 दिसंबर 2020

लेखन भी इक आग

गहरे है जज़्बात रहे, गहरा है अफ़सोस
मौसम सर्दी गर्मी के, कुदरत को मत कोस

चौराहे पर भीड़ जमी, जमी पर बर्फ सी बात
सर्दी में कुछ आग जली, फिर भी ठिठुरी रात

खिड़की से है चाँद दिखा, दिखा चाँद पर दाग
लिखती दिखती वसुंधरा, लेखन भी इक आग

सुन्दरता निर्दोष रही,सुन्दरता में दोष
सृष्टि का सौन्दर्य रहा, हृदय का संतोष

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

ब्रह्मा विष्णु महेश

जिसका कुछ मंतव्य रहा उसका है गंतव्य वो पाए अधिकार यहां  जिसके कुछ कर्तव्य प्राणों पर है बोझ रहा जो कुछ कर तत्काल जिसका होता कोई नहीं उसके तो...