जो जितना ही दूर रहा, वह उतना ही पास
ह्रदय के सामीप्य रहा , सुख दुख का अहसास
बाहर से है सख्त कठोर , भीतर से कमजोर
उसके भीतर कौन रहा, जिसकी ऊपर डोर
जो व्यक्ति उपकार करे , वह पाता सहयोग
जो स्वार्थी उपकार विहीन, पाया उसने रोग
करुणा और क्रंदन के गीत यहां आए है सिसकती हुई सांसे है रुदन करती मांए है दुल्हन की मेहंदी तक अभी तक सूख न पाई क्षत विक्षत लाशों में अपन...
सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएं