सोमवार, 10 मार्च 2025

भींगी हुई पलके

पल पल और प्रतिपल 
भावनाएं छलके
आंसू के भीतर 
भींगी हुई पलके
कभी दिल ये हारी 
कभी होती भारी
खुशी इसके भीतर 
कभी दुख झलके

कभी घुप्प अंधेरा 
खामोशियां है 
कभी चुप सवेरा 
थकी पेशियां है
कभी दिन अधूरे 
भरी दोपहर तक
कभी होली खेली
 मदहोशीया है

1 टिप्पणी:

कोई नया सा