है अपना न कोई सगा
सब लेते मुंह फेर
अनजाने तो प्रीत रखे
रखते अपने बैर
कर आए वे अभी अभी
तीरथ चारो धाम
घर में अब तक दिखे नहीं
उनको अपने राम
अंधियारे सी गुम रही
चाहत की एक शाख
अंधियारी एक रात रही
अंधियारी एक आंख
अंधे को है दिखा नहीं
कुदरत का यह रूप
जीवन केवल छांव नहीं
है सूरज की धूप
मोबाईल से बात करे
बिछड़ा टेलीफोन
गहराई से सोच रहे
यहां अपना है कौन
वाह
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