चमके नभ पे अंधियारे में
तारो से कितने बिन्दु
नीला सा उन्मुक्त गगन है
नीला नीला है सिन्धु
पीड़ाएं तन मन की हरती
चिड़िया से चहकी यह धरती
कुदरत रानी खिली हुई है
खिला हुआ नभ पर इंदु
करुणा और क्रंदन के गीत यहां आए है सिसकती हुई सांसे है रुदन करती मांए है दुल्हन की मेहंदी तक अभी तक सूख न पाई क्षत विक्षत लाशों में अपन...
सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंसुंदर मनमोहक
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