मंगलवार, 18 मार्च 2025

नीले जल झांका करता है

नीले हम आकाश रहे है
नीला निर्मल जल
नीले फूलों से महका है
कलरव करता दल
नीली पहने प्यार चुनरिया 
जीवन का हर पल
नीले जल झांका करता है
 नित दिन अस्ताचल

नव अंकुरित बीजों से ही
 होता नव निर्माण
नवल चेतना ही उजियारे
को देती है प्राण
निर्माणों की पीठ है छीलती
जब पड़ता भार
कोमल कर से न चल पाया
शब्द भेदी वह बाण 

सृजन का आकाश दिया है
हर पल का आभास 
ईश से यह अनुभूति उपजी
जीवन है अब खास
जिसने दी यह मस्त पवन है 
बिखरा है उल्लास
बस उसकी ही खोज रही
बस उसकी ही प्यास

2 टिप्‍पणियां:

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