तकदीरों से नहीं मिला
कोई भी है लक्ष्य
पौरुष कर पुरुषार्थ करो
जीवन का है सत्य
उनको कीर्ति नहीं मिली
जिनको उसकी चाह
कर्मठ करता कर्म रहा
होकर बेपरवाह
फूलों से मकरंद मिला
भंवरे से उमंग
होली में है रास रहा
लगे रंग पे रंग
उतने पैदल दूर चले
जितना बल था पास
उतना ही सामर्थ्य रहा
उतना ही विश्वास
कितने सारे संत मिले
कितने मिले फकीर
जीवन जहां था वहीं रहा
सुधरी न तकदीर
खिले धूप में फूल रहे
मरुथल मिले बबूल
जहा सुविधा की छाँव रही
वहा दुविधा के शूल
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