कही ऊंचे पर्वत तो कही गहरी खाई
शिखर से वो झर के नदी बन के आई
नदी बन के तोड़े है अहम के वो पर्वत
अहम को मिटा कर है गहराई पाई
हर दिल को वो जीत गया
अच्छा एक इन्सान
जीवित स्वाभिमान रखा
जीवित रखा ईमान
करुणा और क्रंदन के गीत यहां आए है सिसकती हुई सांसे है रुदन करती मांए है दुल्हन की मेहंदी तक अभी तक सूख न पाई क्षत विक्षत लाशों में अपन...
सुंदर
जवाब देंहटाएं