मंगलवार, 25 मार्च 2025

गहराई पाई

कही ऊंचे पर्वत तो कही गहरी खाई 
शिखर से वो झर के नदी बन के आई
नदी बन के तोड़े है अहम के वो पर्वत
अहम को मिटा कर है गहराई पाई


हर दिल को वो जीत गया 
अच्छा एक इन्सान 
जीवित स्वाभिमान रखा
जीवित रखा ईमान

1 टिप्पणी:

अपनो को पाए है

करुणा और क्रंदन के  गीत यहां आए है  सिसकती हुई सांसे है  रुदन करती मांए है  दुल्हन की मेहंदी तक  अभी तक सूख न पाई क्षत विक्षत लाशों में  अपन...