कही ऊंचे पर्वत तो कही गहरी खाई
शिखर से वो झर के नदी बन के आई
नदी बन के तोड़े है अहम के वो पर्वत
अहम को मिटा कर है गहराई पाई
हर दिल को वो जीत गया
अच्छा एक इन्सान
जीवित स्वाभिमान रखा
जीवित रखा ईमान
जिसने तिरस्कार सहा किया है विष का पान जीवन के कई अर्थ बुने उसका हो सम्मान कुदरत में है भेद नहीं कुदरत में न छेद कुदरत देती रोज दया कुदर...
सुंदर
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