सुखद और दुखद पल
नदी ने जिया है
रेतीली डगर पर
सफर तय किया है
बिखरते हुए पल
फिर भी न बिखरी
दिया जग को अमृत
जहर खुद पिया है
नदी के किनारे
ओझल हो मुमकिन
मिले न सहारे
हो कठिनाई अनगिन
अंधेरे में दीपक
बनकर जलेंगे
रहे हौसले तो
बदलेंगे ये दिन
करुणा और क्रंदन के गीत यहां आए है सिसकती हुई सांसे है रुदन करती मांए है दुल्हन की मेहंदी तक अभी तक सूख न पाई क्षत विक्षत लाशों में अपन...
नदी प्यारी नदी !
जवाब देंहटाएंDhanyawad
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन
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