सुखद और दुखद पल
नदी ने जिया है
रेतीली डगर पर
सफर तय किया है
बिखरते हुए पल
फिर भी न बिखरी
दिया जग को अमृत
जहर खुद पिया है
नदी के किनारे
ओझल हो मुमकिन
मिले न सहारे
हो कठिनाई अनगिन
अंधेरे में दीपक
बनकर जलेंगे
रहे हौसले तो
बदलेंगे ये दिन
जिसने तिरस्कार सहा किया है विष का पान जीवन के कई अर्थ बुने उसका हो सम्मान कुदरत में है भेद नहीं कुदरत में न छेद कुदरत देती रोज दया कुदर...
नदी प्यारी नदी !
जवाब देंहटाएंDhanyawad
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएं