खिला है सरोवर
खिला है किनारा
किया है किसी ने
कमल को ईशारा
बना है यहां पर
जल का है दर्पण
क्षितिज से उदित हो
सूरज है पधारा
थोड़ा सा सफर है
जीवन का है बाकी
थकन नहीं मिटती
पिला दे है साकी
कहा गए अपने
अधूरे है सपने
देखे नहीं दिखती है
आस्था की झांकी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें