शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2025

हिलेंगे डूलेंगे

रहे है अंधेरे तो  
उजाले मिलेगे
खुली होगी बस्ती 
ताले खुलेगे
पथ पर कठिनतम 
हुई साधना है
अडिग है जो पत्थर 
हिलेंगे डूलेगे 

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