माँ से सुधरे शुक्र शनि ग्रहों का परिवार
माता जी सब कष्ट हरो ,हम तो है परदेश
तुम इतनी क्यो श्याम रही, गहरे काले केश
माता जी से शौर्य मिला , पाये दिव्य विचार
माता बुध्दि देत रही , दे बुध्दि को धार
मुश्किल से है जुड़ पाती , मन से मन की डोर
माँ से मन प्रसन्न हुआ, माँ से मन विभोर
माता मीठी बात करे माँ निर्मल स्वभाव
माँ पिघली और मोम हुई समझी है हर भाव
सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 21 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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