जीवन का श्रृंगार किया , बिन स्वागत सत्कार
भीतर से ही पस्त हुआ ,भीतर से मजबूत
भीतर भीतर रहा करे , भय के कितने भूत
अपनो से सामर्थ्य मिला अपनो से सम्बल
अपनेपन से पायेगा, जितने भी है हल
कितने ही तो मंत्र जपे ,किया पूण्य और दान
सच्चा जीवन छूट गया ,छूट गया ईमान
अपने जो आराध्य रहे वे सबके भगवान
उनके जितने रूप रहे , सबको ले पहचान
जिससे जितना प्यार किया उतना ही अधिकार
प्यार बिना ही तोल मिला , अब नफरत स्वीकार
सुन्दर
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