लड़ते लड़ते पस्त हुए , बन्द हुआ संग्राम
घर मे ही संतुष्ट रहो ,गृह भोजन से पुष्ट
घर मे न रह पायेगे , दुर्जुन दुर्गुण दुष्ट
कितने सारे प्रश्न खड़े , दिखा नही कही यक्ष
सबके अपने स्वार्थ रहे ,सबके अपने पक्ष
पत्तो से ही तुष्ट हुए , घी दीपक न धूप
शिव का सुंदर रूप रहा ,होता दिव्य स्वरूप
घर मे सारे देव रहे , पूर्वज रहे महान
घर गंगा का तीर रहा ,घर है चारो धाम
सुन्दर सृजन
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