मंगलवार, 6 अक्तूबर 2020

प्राचीनता का बोध

प्रगति उसके साथ रही ,जहाँ चिंतन और शोध
खंडहर में अवशेष मिले ,प्राचीनता का बोध

निर्मल दृष्टि  कहा मिली, कहा है निश्छल प्रेम
अपनापन है जहाँ मिला ,वही मिला सुख चैन

जिनके हिय संतोष रहा , वह सच्चा है संत 
वस्त्रो से सन्यास नही , हो इच्छा का  अंत

कथनी करनी एक रहे ,धन का न संचय 
भोगो से जो दूर रहा , रहता संत हृदय

जिनके मन उल्लास नही ,अकिंचन है दीन
संतुष्टि का भाव रखे ,सज्जन तो प्रतिदिन
 

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज