खंडहर में अवशेष मिले ,प्राचीनता का बोध
निर्मल दृष्टि कहा मिली, कहा है निश्छल प्रेम
अपनापन है जहाँ मिला ,वही मिला सुख चैन
जिनके हिय संतोष रहा , वह सच्चा है संत
वस्त्रो से सन्यास नही , हो इच्छा का अंत
कथनी करनी एक रहे ,धन का न संचय
भोगो से जो दूर रहा , रहता संत हृदय
जिनके मन उल्लास नही ,अकिंचन है दीन
संतुष्टि का भाव रखे ,सज्जन तो प्रतिदिन
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 07 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं