कविता अमृत बाँट रही, समझायेगा कौन
जिसका प्रतिपल साथ रहा जो भीतर बाहर
वो है मेरे कृष्ण कन्हैया , वे कान्हा गिरधर
पल पल बरसा नेह रहा स्नेहिल है हर पल
बारिश जल को बांट रही नदिया हुई चंचल
नियति के संजोग रहे लगे गुणा और योग
भागित होते चले गये, प्यारे प्यारे लोग
नैया तो मझधार खड़ी जीवन है सुनसान
कितने तूने युध्द लड़े , फिर भी है संग्राम
भीतर जब अवरोध रहा , बिखरा बाहर क्रोध
तिल तिल कर जल जायेगा ,मृत्यु का है बोध
सुन्दर
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