रविवार, 18 अक्टूबर 2020

माँ रेती सी बिखर रही

माँ नदिया का रूप रही, माँ धरती है खेत 
माँ रेती सी बिखर रही, माँ निर्मित निकेत

माँ घर का एक द्वार रही चूल्हे की है शान
झाड़ू से अब साफ करो , माँ का रोशनदान

माँ धड़कन में सांस रही ,प्राणों का आव्हान
माँ रोगों को दूर करे, करती रोग निदान

माँ सुबह की भोर रही , सूरज की है शाम
माता से धन धान्य मिला,पाया पद सम्मान

बच्चों को माँ पाल रही , माँ है पालनहार
माता से परिवार रहा, माता से सरकार


माँ भक्ति निष्काम रही , सूक्ति का है पाठ
सेवा से सब सूत्र मिले , मिल जाते हर ठाट 



1 टिप्पणी:

अपनो को पाए है

करुणा और क्रंदन के  गीत यहां आए है  सिसकती हुई सांसे है  रुदन करती मांए है  दुल्हन की मेहंदी तक  अभी तक सूख न पाई क्षत विक्षत लाशों में  अपन...