झूठ तो तेरे कंठ रहा, फिर कैसे निर्दोष
शक्ति से साम्राज्य रहा, भक्ति से वैराग्य
माँ का आशीष साथ रहा ,जीवन है सौभाग्य
कर्मठ करते शोर नही ,होते बिल्कुल शांत
कर्मशील का विश्व सगा , कर्महीन आक्रांत
जो कुछ भी अज्ञात रहा , तू कर लेना ज्ञात
ज्ञाता से ही ज्ञान मिला ,कर ज्ञानी से बात
जितने भी प्रयत्न हुए ,उतना ही विश्वास
मंजिल कोई दूर नही ,बिल्कुल तेरे पास
मरुथल में नीर मिला, रांझा को न हीर
मृग तृष्णा सी प्यास रही , धर लेना तू धीर
सुन्दर
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