घर मे खुशिया बसी रहे, देहरी में हो दीप
दोहरे होते चाल चलन , उन सबको तू लीप
मौलिकता तो मिली नही , मिले मिलावट लाल
मिले जुले ही रूप मिले , मौलिकता कंगाल
मौलिक कितने प्रश्न खड़े, कितने भी गम्भीर
फिर भी मूल से जुड़े रहे, निर्धन संत फकीर
मिले जुले कुछ भाव रहे, मिलती जुलती गंध
हिल मिल कर कुछ बात करो, सुधरेंगे सम्बंध
मिलना जुलना बन्द हुआ , केवल है व्यापार
रिश्तो पर अब जंग लगी , दे दो कुछ उपचार
पानी बन कर बह गए, कितने ही संबन्ध
बांध सको तो बांध लो , रिश्तो पर तटबंध
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