शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2025

हिलेंगे डूलेंगे

रहे है अंधेरे तो  
उजाले मिलेगे
खुली होगी बस्ती 
ताले खुलेगे
पथ पर कठिनतम 
हुई साधना है
अडिग है जो पत्थर 
हिलेंगे डूलेगे 

बुधवार, 12 फ़रवरी 2025

दुनिया थमी है

सरकता गगन है खिसकती जमीं है
कही आग दरिया कही कुछ नमी है
 कही नहीं दिखती  वह ईश्वरीय सत्ता 
पर उसी सहारे यह दुनिया थमी है


पानी

पागल और प्रेमी है घायल है पानी 
हुआ दिल जला तो बादल है पानी
नदी बन चला तो ताजा है पानी
बना जब समन्दर तो खारा है पानी

आंखों के अन्दर है भावों का पानी
मिले नहीं मिलता अभावों का पानी
कही एक बूंद भी मिलती नहीं है
मरुथल में मिलता है मुश्किल से पानी

मंगलवार, 11 फ़रवरी 2025

और व्यास देखो


दिखे नव उजाले
सहारे दिखे है 
बवंडर के अन्दर
कोलाहल दिखे है
है अक्षर से शब्दों 
 हुआ एक सफर है
दिखे दुख पराए 
कुछ हमारे लिखे है

पंछी और ख़गदल का 
उल्लास देखो 
चातक की तृप्ति 
 लगी प्यास देखो
हम कुदरत के भीतर
 रहे ही नहीं है 
इस धरती की परिधि 
और व्यास देखो

सोमवार, 10 फ़रवरी 2025

समन्दर वृहद है



खुली आंख से तू
सपने को बुन ले
सफल जिंदगी की 
कोई राह चुन ले
बस किस्मत के दम पर 
रहे मत भरोसे 
बहा श्रम सीकर तू
शिखर को ही चूम ले

रहा गम जीवन में 
हुई आंख नम है 
गैरो का ज्यादा 
मेरा दर्द कम है 
है खुद  का रखोगे 
जीवन सीधा सादा
पूरा होगा सपना 
बढ़ेंगे कदम है

है मिल गई जिसको 
जीवन की राह 
चाहे मिले सुख है 
न ग़म की परवाह 
रहे चाहे पथ पर 
कंकड़ और पत्थर
बिछे हुए कांटे 
न निकली है आह 

ग़मो का अंधेरा 
अंधेरे की हद है 
अंधेरों के आगे 
जीवन में सुखद है
जिसे मिले पथ पर 
पीड़ा और आंसू 
बहा सपनों का दरिया 
समन्दर वृहद है

पड़ी है दरारें



रही न मोहब्बत
  बनी है मीनारें 
खींची हुई लंबी
 ऊंची सी दीवारें
रिश्तों में ऐसा 
लगा हुआ पैसा
पैसों बिन यहां 
पड़ी हुई दरारें 



रविवार, 9 फ़रवरी 2025

योद्धा से दिखो


भरम जिंदगी में है जिसने है पाले 
लगे उसकी किस्मत पर बड़े बड़े ताले
कठिन वह पलो को अब कैसे सम्हाले
 मिले नहीं घर है , मिले न निवाले

पर्वत से विपदाए सहना है सीखो 
जड़ों से जुड़ो और जुड़ना है सीखो
 कितने हो दुर्दिन सूरज से उगो तुम
तमस से लड़ो तुम ,योद्धा से दिखो


रहे जिंदगी है  घनी छांव जैसी
सकून से भरी हो माहौल देशी 
  खबर हो खुशी की  सच्चे हो बच्चे 
नहीं करते हो उसकी ऐसी की तैसी

जीवन है नदी का


जीवन है नदी का 
बहना है आया
किनारों से उसने
साथ लम्बा निभाया
गति में रही वह
तो बोली है कल छल
गहरी हुई वह
तो उथला जल पाया

समंदर से जीवन 
जीना है सीखो
लहरों के संग संग 
रहना है सीखो 
कठिन कुछ पल
ज्वार भाटे के जैसे 
उन्हीं मुश्किलों में 
तुम इतिहास लिखो

कहा हम तलाशे


वहीं रही करवट 
वहीं रही सांसे
अपनो के सपनों को 
कहा हम तलाशे
है मंदिर के अब तक 
खुले नहीं पट है
तीर्थों पे प्रवचन 
कथा में तमाशे

शनिवार, 8 फ़रवरी 2025

इंसाफ होगा

इन्हीं गर्मियों में है 
नगर साफ होगा 
बिजली का बिल भी 
यहां हाफ होगा 
दिए है सभी को 
चुनावी है वादे
टूटे कुछ घरों से 
इंसाफ होगा



रुकी न जरा सी



किस्मत रही बस उसकी ही दासी 
चली जो निरंतर शिखर की है प्यासी
उगी जो पूरब से ढली शाम जैसी 
जो ठहरी नहीं है रुकी न जरा सी

मां ने दिए है बेटों को निवाले
मां की है गोदी जगत जो सम्हाले
विपदाये जितनी रही हो मगर वह
 बच्चों को पाले और विपदाये टाले 

जले हम हवन से


भरा है समंदर 
भरी हुईं आँखें 
टूटे हुए पर्वत 
कटी हुई शाखें 
किसी ने न समझी 
दुखी मन की पीड़ा
लगी हुई बेड़ी 
डली है सलाखें 

रहे हम धरा पे 
जुड़े हम गगन से
ऊंचे हो इरादे 
उड़े हम पवन से
चले जब भी पथ पर
 हो जाए लथपथ 
जले दीप शिखा से 
जले हम हवन से

रहा वही इन्सान 
जिसने विश्वास पाया
भागीरथ बना और 
गंगा है लाया
पत्थर को बिन कर 
बनाए शिवाले
पत्थर और कंकर में 
 ईश्वर जगाया



नवल गीत गया

नहीं जिसने जीवन में
 मधुमास पाया
गहन वेदना का नवल 
गीत गया
मिले जिसको रिश्ते 
कटीले नुकीले
हुए हाथ चोटिल
हुई जीर्ण काया

धरा है प्रफुल्लित
 है उन्मुक्त गगन 
 इधर उड़ते पंछी 
 उधर रहते मगन 
पवन बहती ताजी
 थोड़ा मुस्करा लो
सूरज दे रहा है 
जीवन को है अगन

धरा जिसने पाई 
उसका आकाश अपना 
मगर घर का मिलना 
केवल एक सपना
सपनों में बीता 
 बचपन और यौवन
मिली न विरासत 
अब तो जीवन में तपना



शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2025

समंदर

समंदर के अन्दर है
 कितने शिवाले
रहे रत्न सारे 
है उसने सम्हाले
समन्दर से अमृत
 समंदर बनो तुम
है अपने भीतर यह  
कई राज पाले 

समंदर में नदिया 
समंदर में सदिया
समंदर में पाई  है 
सुन्दर सी बगिया
कही इसके भीतर 
है हालात बदतर
है इसमें समाई
 जीवन की बतिया

दुखी है समंदर
 दुखी है किनारा
दुखी हुई धरती 
और जंगल सारा
दुखी हो के बादल 
बरसाता है जल 
दुखी ही बना है
 दुखी का सहारा

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

क्षितिज के किनारे

यही बहती नदिया
 किनारे बहे है 
ढहते हुए पर्वत
 ऊंचे किले ढहे है
भले छू लो ऊंचा
 आकाश कितना
क्षितिज किनारे 
रहे अनछुए है

समुंदर असीम है 
क्षितिज उसका कोना
रखो धैर्य अपना 
 होगा जीवन सलोना
रहे हर किनारे पे 
मगरमच्छ सारे
अगर कोई डराए 
मगर तुम डरो ना

है जितने भी तारे 
जमीन पे सारे
जमीन पे है नभ से
 किसी ने उतारे
 नदिया है झीलमिल
  झीलमिल किनारे
क्षितिज से है जल पर
 दिखे है नजारे

जरा सी गली है
 गली में है नारा
चुनावी क्षणों में 
चढ़ा हुआ पारा
जीता जैसे नेता
 हुआ ऐसे ओझल
मिला है वहीं तो 
नेता जो है हारा 

समंदर में नदिया
 नदिया में नाले
सरोवर धरोहर
 कुएं जल के प्याले
नहरों से कितनी 
सूख गई नदिया
शहरों की खुशियों से
 दुखी गांव वाले

खाली मन की बगिया 
खाली हुई थाली
चुभे जैसे नश्तर सी 
उनकी है गाली
पड़ी नहीं दृष्टि 
तरसते जीवन पर
नहीं अब फूलों को 
मिलता है माली



घनीभूत पीड़ा के दरिया बहे है

अंधेरों के भीतर 
उजाले रहे है
घनीभूत पीड़ा के
 दरिया बहे है
ये कैसा मुकद्दर 
जहां है समन्दर 
ख्यालों में खारे 
अनुभव रहे है

जरा पूर्व जन्मों का 
कही पाप धो लू 
लिखूं आत्म कथा 
और भेद खोलूं
कही यादें पनघट
कही यादें मरघट
जो थोड़ा सकून हो तो 
जीवन को है जी लू

ये सारी है दुनिया 
क्या तुम जीत लोगे
जितना भी दम होगा 
तुम उतने चलोगे
यदि है इरादे 
बड़े रहे मकसद
तो स्वर्णिम शिखर को
 तुम चूम लोगे

कही बंद पट है
 कही बंद तट है
कही गंगा जमुना
 किनारों पे वट है
कही कुंभ में जाने
 आने के लिए
 कही भीड़ उमड़ी 
कही सन्त मठ है

कही आते जाते हुए
रस्ता है देखे
वे घूर घूर कर
कही आंख सेके 
खड़े हुए मजनू
 चौराहों पर है
बने हुए रहवर
कही जाल फेंके

रविवार, 2 फ़रवरी 2025

सृजन खिल खिलाया

गीतों की धारा ने है
 सौंदर्य गाया 
गजल डूबी गम में 
छंद मुस्कराया
कभी व्यंग करते 
दोहे रहे है
साहित्यिक सुरों से 
सृजन खिलखिलाया

शनिवार, 1 फ़रवरी 2025

जीवन तेरा तब है

द्वेष दुर्भावना का 
किया जाए अन्त 
स्नेह सद्भावना को 
करे हम जीवन्त 
टूट गई आशाओं को 
एक विश्वास देकर
नई सम्भावना का 
ले आए वसन्त

खुली हुई खिड़की 
खुला हुआ नभ है
लिखी नव इबारत 
जीवन तेरा तब है 
कही दिखते पलकों पे
 करुणा के आंसू
ऊंची हुईं मीनारें 
नहीं दिखता रब है




 

जपे राम हर पल

दीपक मन की पीर हरे हर ले असत तिमिर रोशन वह ईमान करे  मजबूत करे जमीर पग पग पर संघर्ष करे सत्य करे न शोर  वह मांगे कुछ और नहीं  मांगे मन की भो...