गीतों की धारा ने है
सौंदर्य गाया
गजल डूबी गम में
छंद मुस्कराया
कभी व्यंग करते
दोहे रहे है
साहित्यिक सुरों से
सृजन खिलखिलाया
करुणा और क्रंदन के गीत यहां आए है सिसकती हुई सांसे है रुदन करती मांए है दुल्हन की मेहंदी तक अभी तक सूख न पाई क्षत विक्षत लाशों में अपन...
वाह
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