Srijan
बुधवार, 12 फ़रवरी 2025
दुनिया थमी है
सरकता गगन है खिसकती जमीं है
कही आग दरिया कही कुछ नमी है
कही नहीं दिखती वह ईश्वरीय सत्ता
पर उसी सहारे यह दुनिया थमी है
1 टिप्पणी:
Anita
15 फ़रवरी 2025 को 9:17 pm बजे
वाक़ई ऐसा ही है
जवाब दें
हटाएं
उत्तर
जवाब दें
टिप्पणी जोड़ें
ज़्यादा लोड करें...
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
वेदना ने कुछ कहा है
आई याद मां की
सखिया करती हास ठिठौली
जिव्हा खोली कविता बोली कानो में मिश्री है घोली जीवन का सूनापन हरती भाव भरी शब्दो की टोली प्यार भरी भाषाए बोले जो भी मन...
बोझिल है आकाश
ऊँचे पर्वत मौन खड़े, जग में सीना तान इनसे नदिया नीर बहे, उदगम के स्थान गहरी झील सी आँख भरी, बोझिल है आकाश पर्वत टूट कर रोज गिरे, जंगल की है ...
वाक़ई ऐसा ही है
जवाब देंहटाएं