सरकता गगन है खिसकती जमीं है
कही आग दरिया कही कुछ नमी है
कही नहीं दिखती वह ईश्वरीय सत्ता
पर उसी सहारे यह दुनिया थमी है
करुणा और क्रंदन के गीत यहां आए है सिसकती हुई सांसे है रुदन करती मांए है दुल्हन की मेहंदी तक अभी तक सूख न पाई क्षत विक्षत लाशों में अपन...
वाक़ई ऐसा ही है
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