सोमवार, 10 फ़रवरी 2025

समन्दर वृहद है



खुली आंख से तू
सपने को बुन ले
सफल जिंदगी की 
कोई राह चुन ले
बस किस्मत के दम पर 
रहे मत भरोसे 
बहा श्रम सीकर तू
शिखर को ही चूम ले

रहा गम जीवन में 
हुई आंख नम है 
गैरो का ज्यादा 
मेरा दर्द कम है 
है खुद  का रखोगे 
जीवन सीधा सादा
पूरा होगा सपना 
बढ़ेंगे कदम है

है मिल गई जिसको 
जीवन की राह 
चाहे मिले सुख है 
न ग़म की परवाह 
रहे चाहे पथ पर 
कंकड़ और पत्थर
बिछे हुए कांटे 
न निकली है आह 

ग़मो का अंधेरा 
अंधेरे की हद है 
अंधेरों के आगे 
जीवन में सुखद है
जिसे मिले पथ पर 
पीड़ा और आंसू 
बहा सपनों का दरिया 
समन्दर वृहद है

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दुनिया थमी है

सरकता गगन है खिसकती जमीं है कही आग दरिया कही कुछ नमी है  कही नहीं दिखती  वह ईश्वरीय सत्ता  पर उसी सहारे यह दुनिया थमी है