शनिवार, 1 फ़रवरी 2025

जीवन तेरा तब है

द्वेष दुर्भावना का 
किया जाए अन्त 
स्नेह सद्भावना को 
करे हम जीवन्त 
टूट गई आशाओं को 
एक विश्वास देकर
नई सम्भावना का 
ले आए वसन्त

खुली हुई खिड़की 
खुला हुआ नभ है
लिखी नव इबारत 
जीवन तेरा तब है 
कही दिखते पलकों पे
 करुणा के आंसू
ऊंची हुईं मीनारें 
नहीं दिखता रब है




 

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