सोमवार, 10 फ़रवरी 2025

पड़ी है दरारें



रही न मोहब्बत
  बनी है मीनारें 
खींची हुई लंबी
 ऊंची सी दीवारें
रिश्तों में ऐसा 
लगा हुआ पैसा
पैसों बिन यहां 
पड़ी हुई दरारें 



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दुनिया थमी है

सरकता गगन है खिसकती जमीं है कही आग दरिया कही कुछ नमी है  कही नहीं दिखती  वह ईश्वरीय सत्ता  पर उसी सहारे यह दुनिया थमी है