नहीं जिसने जीवन में
मधुमास पाया
गहन वेदना का नवल
गीत गया
मिले जिसको रिश्ते
कटीले नुकीले
हुए हाथ चोटिल
हुई जीर्ण काया
धरा है प्रफुल्लित
है उन्मुक्त गगन
इधर उड़ते पंछी
उधर रहते मगन
पवन बहती ताजी
थोड़ा मुस्करा लो
सूरज दे रहा है
जीवन को है अगन
धरा जिसने पाई
उसका आकाश अपना
मगर घर का मिलना
केवल एक सपना
सपनों में बीता
बचपन और यौवन
मिली न विरासत
अब तो जीवन में तपना
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें