जीवन है नदी का
बहना है आया
किनारों से उसने
साथ लम्बा निभाया
गति में रही वह
तो बोली है कल छल
गहरी हुई वह
तो उथला जल पाया
समंदर से जीवन
जीना है सीखो
लहरों के संग संग
रहना है सीखो
कठिन कुछ पल
ज्वार भाटे के जैसे
उन्हीं मुश्किलों में
तुम इतिहास लिखो
सरकता गगन है खिसकती जमीं है कही आग दरिया कही कुछ नमी है कही नहीं दिखती वह ईश्वरीय सत्ता पर उसी सहारे यह दुनिया थमी है
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