मंगलवार, 11 फ़रवरी 2025

और व्यास देखो


दिखे नव उजाले
सहारे दिखे है 
बवंडर के अन्दर
कोलाहल दिखे है
है अक्षर से शब्दों 
 हुआ एक सफर है
दिखे दुख पराए 
कुछ हमारे लिखे है

पंछी और ख़गदल का 
उल्लास देखो 
चातक की तृप्ति 
 लगी प्यास देखो
हम कुदरत के भीतर
 रहे ही नहीं है 
इस धरती की परिधि 
और व्यास देखो

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