दिखे नव उजाले
सहारे दिखे है
बवंडर के अन्दर
कोलाहल दिखे है
है अक्षर से शब्दों
हुआ एक सफर है
दिखे दुख पराए
कुछ हमारे लिखे है
पंछी और ख़गदल का
उल्लास देखो
चातक की तृप्ति
लगी प्यास देखो
हम कुदरत के भीतर
रहे ही नहीं है
इस धरती की परिधि
और व्यास देखो
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