अंधेरों के भीतर
उजाले रहे है
घनीभूत पीड़ा के
दरिया बहे है
ये कैसा मुकद्दर
जहां है समन्दर
ख्यालों में खारे
अनुभव रहे है
जरा पूर्व जन्मों का
कही पाप धो लू
लिखूं आत्म कथा
और भेद खोलूं
कही यादें पनघट
कही यादें मरघट
जो थोड़ा सकून हो तो
जीवन को है जी लू
ये सारी है दुनिया
क्या तुम जीत लोगे
जितना भी दम होगा
तुम उतने चलोगे
यदि है इरादे
बड़े रहे मकसद
तो स्वर्णिम शिखर को
तुम चूम लोगे
कही बंद पट है
कही बंद तट है
कही गंगा जमुना
किनारों पे वट है
कही कुंभ में जाने
आने के लिए
कही भीड़ उमड़ी
कही सन्त मठ है
कही आते जाते हुए
रस्ता है देखे
वे घूर घूर कर
कही आंख सेके
खड़े हुए मजनू
चौराहों पर है
बने हुए रहवर
कही जाल फेंके
दुनिया के अजीबोगरीब रंग....
जवाब देंहटाएंसादर
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ७ जनवरी २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
"जहाँ है समन्दर
जवाब देंहटाएंख्यालों में खारे
अनुभव रहे है" ..
👌👌👌
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुन्दर
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