गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

घनीभूत पीड़ा के दरिया बहे है

अंधेरों के भीतर 
उजाले रहे है
घनीभूत पीड़ा के
 दरिया बहे है
ये कैसा मुकद्दर 
जहां है समन्दर 
ख्यालों में खारे 
अनुभव रहे है

जरा पूर्व जन्मों का 
कही पाप धो लू 
लिखूं आत्म कथा 
और भेद खोलूं
कही यादें पनघट
कही यादें मरघट
जो थोड़ा सकून हो तो 
जीवन को है जी लू

ये सारी है दुनिया 
क्या तुम जीत लोगे
जितना भी दम होगा 
तुम उतने चलोगे
यदि है इरादे 
बड़े रहे मकसद
तो स्वर्णिम शिखर को
 तुम चूम लोगे

कही बंद पट है
 कही बंद तट है
कही गंगा जमुना
 किनारों पे वट है
कही कुंभ में जाने
 आने के लिए
 कही भीड़ उमड़ी 
कही सन्त मठ है

कही आते जाते हुए
रस्ता है देखे
वे घूर घूर कर
कही आंख सेके 
खड़े हुए मजनू
 चौराहों पर है
बने हुए रहवर
कही जाल फेंके

4 टिप्‍पणियां:

  1. दुनिया के अजीबोगरीब रंग....
    सादर
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ७ जनवरी २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. "जहाँ है समन्दर
    ख्यालों में खारे
    अनुभव रहे है" ..
    👌👌👌

    जवाब देंहटाएं

दुनिया थमी है

सरकता गगन है खिसकती जमीं है कही आग दरिया कही कुछ नमी है  कही नहीं दिखती  वह ईश्वरीय सत्ता  पर उसी सहारे यह दुनिया थमी है