भरी हुईं आँखें
टूटे हुए पर्वत
कटी हुई शाखें
किसी ने न समझी
दुखी मन की पीड़ा
लगी हुई बेड़ी
डली है सलाखें
रहे हम धरा पे
जुड़े हम गगन से
ऊंचे हो इरादे
उड़े हम पवन से
चले जब भी पथ पर
हो जाए लथपथ
जले दीप शिखा से
जले हम हवन से
रहा वही इन्सान
जिसने विश्वास पाया
भागीरथ बना और
गंगा है लाया
पत्थर को बिन कर
बनाए शिवाले
पत्थर और कंकर में
ईश्वर जगाया
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