शनिवार, 8 फ़रवरी 2025

जले हम हवन से


भरा है समंदर 
भरी हुईं आँखें 
टूटे हुए पर्वत 
कटी हुई शाखें 
किसी ने न समझी 
दुखी मन की पीड़ा
लगी हुई बेड़ी 
डली है सलाखें 

रहे हम धरा पे 
जुड़े हम गगन से
ऊंचे हो इरादे 
उड़े हम पवन से
चले जब भी पथ पर
 हो जाए लथपथ 
जले दीप शिखा से 
जले हम हवन से

रहा वही इन्सान 
जिसने विश्वास पाया
भागीरथ बना और 
गंगा है लाया
पत्थर को बिन कर 
बनाए शिवाले
पत्थर और कंकर में 
 ईश्वर जगाया



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दुनिया थमी है

सरकता गगन है खिसकती जमीं है कही आग दरिया कही कुछ नमी है  कही नहीं दिखती  वह ईश्वरीय सत्ता  पर उसी सहारे यह दुनिया थमी है