गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

क्षितिज के किनारे

यही बहती नदिया
 किनारे बहे है 
ढहते हुए पर्वत
 ऊंचे किले ढहे है
भले छू लो ऊंचा
 आकाश कितना
क्षितिज किनारे 
रहे अनछुए है

समुंदर असीम है 
क्षितिज उसका कोना
रखो धैर्य अपना 
 होगा जीवन सलोना
रहे हर किनारे पे 
मगरमच्छ सारे
अगर कोई डराए 
मगर तुम डरो ना

है जितने भी तारे 
जमीन पे सारे
जमीन पे है नभ से
 किसी ने उतारे
 नदिया है झीलमिल
  झीलमिल किनारे
क्षितिज से है जल पर
 दिखे है नजारे

जरा सी गली है
 गली में है नारा
चुनावी क्षणों में 
चढ़ा हुआ पारा
जीता जैसे नेता
 हुआ ऐसे ओझल
मिला है वहीं तो 
नेता जो है हारा 

समंदर में नदिया
 नदिया में नाले
सरोवर धरोहर
 कुएं जल के प्याले
नहरों से कितनी 
सूख गई नदिया
शहरों की खुशियों से
 दुखी गांव वाले

खाली मन की बगिया 
खाली हुई थाली
चुभे जैसे नश्तर सी 
उनकी है गाली
पड़ी नहीं दृष्टि 
तरसते जीवन पर
नहीं अब फूलों को 
मिलता है माली



2 टिप्‍पणियां:

दुनिया थमी है

सरकता गगन है खिसकती जमीं है कही आग दरिया कही कुछ नमी है  कही नहीं दिखती  वह ईश्वरीय सत्ता  पर उसी सहारे यह दुनिया थमी है