यही बहती नदिया
किनारे बहे है
ढहते हुए पर्वत
ऊंचे किले ढहे है
भले छू लो ऊंचा
आकाश कितना
क्षितिज किनारे
रहे अनछुए है
समुंदर असीम है
क्षितिज उसका कोना
रखो धैर्य अपना
होगा जीवन सलोना
रहे हर किनारे पे
मगरमच्छ सारे
अगर कोई डराए
मगर तुम डरो ना
है जितने भी तारे
जमीन पे सारे
जमीन पे है नभ से
किसी ने उतारे
नदिया है झीलमिल
झीलमिल किनारे
क्षितिज से है जल पर
दिखे है नजारे
जरा सी गली है
गली में है नारा
चुनावी क्षणों में
चढ़ा हुआ पारा
जीता जैसे नेता
हुआ ऐसे ओझल
मिला है वहीं तो
नेता जो है हारा
समंदर में नदिया
नदिया में नाले
सरोवर धरोहर
कुएं जल के प्याले
नहरों से कितनी
सूख गई नदिया
शहरों की खुशियों से
दुखी गांव वाले
खाली मन की बगिया
खाली हुई थाली
चुभे जैसे नश्तर सी
उनकी है गाली
पड़ी नहीं दृष्टि
तरसते जीवन पर
नहीं अब फूलों को
मिलता है माली
सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत खूब 👌
जवाब देंहटाएं