Srijan
रविवार, 2 फ़रवरी 2025
सृजन खिल खिलाया
गीतों की धारा ने है
सौंदर्य गाया
गजल डूबी गम में
छंद मुस्कराया
कभी व्यंग करते
दोहे रहे है
साहित्यिक सुरों से
सृजन खिलखिलाया
1 टिप्पणी:
सुशील कुमार जोशी
3 फ़रवरी 2025 को 7:56 am बजे
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