बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

दिखा नही कही यक्ष


घर घर मे है युुध्द हुुयेे , लड़ते लोग तमाम
लड़ते लड़ते पस्त हुए , बन्द हुआ संग्राम

घर मे ही संतुष्ट रहो ,गृह भोजन से पुष्ट 
घर मे न रह पायेगे , दुर्जुन दुर्गुण दुष्ट

कितने सारे प्रश्न खड़े , दिखा नही कही यक्ष
सबके अपने स्वार्थ रहे ,सबके अपने पक्ष

पत्तो से ही तुष्ट हुए ,  घी दीपक न धूप
शिव का सुंदर रूप रहा ,होता दिव्य स्वरूप 

घर मे सारे देव रहे , पूर्वज रहे महान
घर गंगा का तीर रहा ,घर है चारो धाम 




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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज